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Showing posts from August, 2017

दूध के साथ शहद के फायदे

 दूध के साथ शहद के फायदे दूध पीना सेहत के लिए फायदेमंद है, यह तो आप जानते ही हैं। लेकिन दूध में अगर शहद मिलाएंगे, तो कई गुना ज्यादा फायदे पाएंगे। इतना ही नहीं, सेहत की समस्याओं से भी निजात मिलेगी।  जानिए दूध में शहद मिलाकर पीने के फायदे - 1 रोजाना दूध के साथ शहद मिलाकर पीना, आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए लाभकारी है। यह दोनों प्रकार की क्षमताओं में इजाफा करने में सहायक है। 2 अगर नींद न आने या कम नींद की समस्या है, तो रातको सोते समय गर्म दूध में शहद का प्रयोग करें, इससे नींद भी बेहतर होगी और आप रिलेक्स महसूस करेंगे। 3 पाचन क्रिया को दुरुस्त करने के लिए दूध में शहद डालकर पीना एक बढ़िया उपाय है। इससे कब्ज की समस्या भी हल हो जाएगी। 4 दूध आपको प्रोटीन और कैल्शियम के अलावा कई जरूरी पोषक तत्व देता है और शहद प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। दोनों मिलकर एक बेहतरीन सेहत विकल्प साबित होते हैं | 5 तनाव दूर करने के लिए यह बेहतरीन उपाय है। इसके अलावा हल्‍के गुनगुने दूध में शहद मि‍लाकर पीने से प्रजनन क्षमता और शुक्राणुओं की संख्या में वृद्धि होती है।

स्वाइन फ्लू से बचने के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

स्वाइन फ्लू से बचने के लिए आयुर्वेदिक औषधियां स्वाइन फ्लू का संक्रमण किसी को भी अपनी चपेट में ले सकता है, जो आपके लिए न सिर्फ खतरनाक बल्कि कई बार जानलेवा भी हो सकता है। इसलिए हम बता रहे हैं इससे बचने के लिए आयुर्वेदिक औषधियां , जिन्हें जानना आपके लिए बेहद जरूरी है। 1 तुलसी - तुलसी आपको इस संक्रमण से बचा सकती है, अत: रोजाना किसी भी रूप में इसका सेवन करें ताकि आप स्वाइन फ्लू के साथ-साथ अन्य संक्रमण से बच सकें। 2 कपूर - किसी भी प्रकार के संक्रमण से निजात दिलाने के लिए कपूर एक औषधि की तरह काम करता है। श्वसन संबंधी संक्रमण में इसे सूंघना फायदेमंद है, इसलिए आपने सुना होगा कि इलायची और कपूर को सूंघने से स्वाइन फ्लू से बचा जा सकता है। आप इसे खा भी सकते हैं लेकिन इसकी मात्रा गेहूं के दाने बराबर या इससे भी कम रखें। 3 नीम - प्राकृतिक एंटीबायोटिक, एंटीइंफ्लेमेटरी के तौर पर नीम का प्रयोग सदियों से किया जाता रहा है, और स्वाइन फ्लू से बचने के लिए भी आप इसकी मदद ले सकते हैं। रोजाना नीम की कुछ पत्त‍ियां चबाकर आप न सिर्फ स्वाइन फ्लू से बच सकते हैं, बल्कि रक्त को भी शुद्ध कर सकत

अस्थमा

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अस्थमा – Asthma अस्थमा  ( दमे ) का दौरा पड़ने पर श्वास नली प्रभावित होती है और सांस लेने में कठिनाई होती है | दौरे पड़ने से श्वास नली में तनाव हो जाता है | श्वास नली की मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं और नली तंग हो जाती है | इस कारण वायु फेफड़ों से निकलने या उसमें प्रवेश के समय कष्ट होता है | उसमें श्लेष्मा पैदा हो जाने से श्वास लेने में और अधिक कठिनाई होती है | अस्थमा रोग के कारण दमे का पहला आक्रमण फेफड़ों में संक्रमण से होता है | कीटाणुओं, खाद्य वस्तुओं तथा घर में किसी कारण से एलर्जी के कारण भी दमा हो जाता है | भावनात्मक कारणों से तथा मौसम के बदलने पर भी दमा हो जाता है | अस्थमा के लक्षण दमा के लक्षणों में श्वास नली से सीटी की-सी आवाज और कई बार खांसी भी आती है | नाड़ी की स्पन्दन गति बढ़ जाती है | सांस लेने में कठिनाई होने के कारण दौरे के समय रोगी को बोलने में भी कठिनाई होती है | अस्थमा का आयुर्वेदिक उपचार / अस्थमा के टोटके / उपाय   दमे के रोगी प्रायः दौरा पड़ने पर Inhaler का प्रयोग करते हैं अथवा ऐसी दवाइयों का सेवन करते हैं जिनसे श्वास नली खुल जाए और सांस लेने

स्वाइन फ्लू में तुलसी के लाभ,

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                                                                  स्वाइन फ्लू में तुलसी के लाभ                                                                    स्वाइन फ्लू (एच1एन1 फ्लू वायरस) अधिकांश पशुओ जैसे सुअरों में पाया जाता है। इन पशुओं का सेवन करने पर या इन में पाए जाने वाले स्वाइन फ्लू के वायरस के द्वारा वातावरण के दूषित होने पर जब मनुष्य इस वायरस के संपर्क में आते हैं तो इस वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। आमतौर पर यह देखने में आता हैं कि स्वाइन फ्लू के लक्षण बहुत ही साधारण बीमारी जैसे होते हैं- सर्दी, खांसी और बुखार, परन्तु यह लक्षण कभी-कभार जानलेवा भी हो सकते हैं। स्वाइन फ्लू से निजात पाने के लिए तुलसी की पत्तियों का सेवन बहुत लाभकारी हो सकता है। तुलसी में प्रतिजीवाणु (एंटीबैक्टिरीयल) गुण होते हैं जो शरीर सहित समग्र रक्षा तंत्र को बेहतर बनाने में मदद करता है और शरीर में वायरल रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है। तुलसी के साथ गिलोय और हल्दी का सेवन करने से, शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है और स्वाइन फ्लू से बचाव करने की संभावना भी बढ़ जाती

खांसी के घरेलू उपचार

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खांसी के घरेलू  उपचार खांसी शरीर में होने वाले विभिन्न रोगों के कारणों की प्रतिक्रिया है | जब हम सांस लेते हैं तो सांस नली बन्द हो जाती है | उसमें रुकावट पैदा होती है और छाती में सिकुड़न पैदा होकर वायु के गुजरने में दबाव पैदा होता है | जब स्वरयंत्र खुल जाता है तो आराम अनुभव होता है | स्वरयंत्र के बंद होने अथवा उसमें रुकावट पैदा होने के कारण धूल-मिट्टी, कीटाणु अथवा श्लेष्मा उत्पन्न होती है | खांसी का कारण सर्दी, जुकाम के अतिरिक्त गले और सांस की नलियों का संक्रमण, फेफड़े तथा दिल की बीमारियां भी हो सकती हैं | जब तक खांसी के मूल कारण का सही ढंग से निदान न किया जाए, तब तक केवल खांसी के इलाज के लिए दवाएं पीने से विशेष लाभ नहीं होगा | इसलिए आवश्यक है कि पहले खांसी के मूल रोग का निदान किया जाए | खांसी मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है-एक सूखी, जिसमें कफ निकलने में कठिनाई होती है, दूसरी बलगमी खांसी | परंतु एक तीसरे प्रकार की खांसी, “कुकुर खांसी” | सूखी खांसी में कफ निकलने में कठिनाई होती है | सूखी खांसी वास्तव में खांसी प्रारंभ होने का लक्षण है | बलगमी खांसी में थोड़ा खांसने के बाद