Ayurveda Is The Best To Cure Piles / Hemorrhoids
बवासीर / अर्श - आधुनिक भाषा में बवासीर / अर्श को Piles / Hemorrhoids कहा जाता है | यह मलद्वार / गुदा में पैदा होने वाला रोग है | अर्श एक त्रिदोषज रोग है और आयुर्वेद में इसको महारोग कहा गया है | बवासीर रोग का मुख्य कारण लगातार कब्ज रहना माना गया है यह रोग औरतों में विशेष रूप से पाया जाता है | जब शुष्क मल को जब बाहर निकालने के लिए जोर लगाया जाता है तो दबाव पड़ने पर मांस तन्तुओं से बनी दीवार के कमजोर होने के कारण सिराओं के आगे के हिस्से में रक्त इकट्ठा होने से वह हिस्सा फूल जाता है और इस सूजन को अर्श / मस्से / बवासीर कहते है | इस रोग में रोगी को बहुत पीड़ा होती है यह कष्टसाध्य रोग है और मंद अग्नि वाले रोगी में यह रोग विशेष रूप से पैदा होता है | चिकित्सा भेद से अर्श / बवासीर दो प्रकार का होता है
सूखी बवासीर (शुष्कार्श ) और खूनी बवासीर ( रक्तार्श ) | इसके इलावा अर्श के दो और प्रकार है- Internal Piles and External Piles .
बवासीर / अर्श रोग का कारण - बवासीर रोग होने के कई कारण हो सकते है | इसके मुख्य कारण इस प्रकार है -
खट्टे - तीखे और नमक वाले पदार्थों का ज्यादा सेवन करने से
वातादि दोषों के प्रकुपित होने से
मल को रोककर रखने से
लगातार कब्ज रहने से
शराब ज्यादा पीने से
आलस्य या शारीरिक कार्य कम करने से
पानी मात्रा में पीना
बहुत देर तक बैठे रहने से
अधिक उपवास रखने से
अधिक व्यायाम करने से
आहार में फाइबर की कमी होने से अर्श रोग होने की संभावना रहती है
बवासीर / अर्श के सामान्य लक्षण -
रोगी को अंगुली एवं गुदा परीक्षा मस्से महसूस है |
मल का त्याग करते समय और बाद में खून निकलता है |
कब्ज रहने से मल त्याग के समय पीड़ा के साथ कड़ा मल निकलता है |
रोगी को बैठने में मुश्किल होती है तेज और सुई चुबने जैसी वेदना होती है |
अर्श रोग में शुद्ध रक्त निकलता है जिसको पानी से साफ़ करने दाग नहीं रहता
अर्श में रक्त कम या ज्यादा निकलता है जिसके कारण रोगी का H.B कम हो जाता है जिससे रोगी बेहोश भी हो जाता है |
बवासीर / अर्श का आयुर्वेदिक उपचार - बवासीर / अर्श की चिकित्सा लक्षणों के आधार पर चिकित्सक की सलाह से करानी चाहिए | आयुर्वेद में अर्श रोग का पूरी तरह इलाज संभव है
बवासीर के रोगी को सुबह नारायण चूर्ण या त्रिफला चूर्ण या गुलकंद का सेवन सुखोष्ण जल से चाहिए |
भोजन खाने से पहले भूनी हुई छोटी हरड़ का चूर्ण गुड़ के साथ मिलकर खाना चाहिए
काला तिल 50 gm और 50 gm मक्खन / दही के साथ चबाकर 21 दिन तक खाने से मस्से ख़त्म होते है |
मंदाग्नि के रोगी को लस्सी पीने को दें
चित्रकमूल और सोंठ का चूर्ण 3 gm की मात्रा में सुबह और शाम गर्म जल से खाएं
कासीसादि तेल को रुई पर लगाकर मस्सों पर लगायें यह शोथ, खुजली और वेदना कम करता है |
प्राणदा वटी / अर्शघनी वटी / अर्श कुठार रस आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श से खा सकते है |
भोजन के बाद अभयारिष्ट / द्राक्षासव / फलारिष्ट 20 से 25 ml समान जल के साथ पीने को दें
अर्श में पथ्य -अपथ्य - पुराना चावल , दलिया , मुंग-अरहर-मसूर की दाल , गाय-बकरी का दूध, दही, मक्खन, बथुआ, चौलाई, मूली , गाजर , आनर , संतरा , मुनका आंवला अर्श के रोगी को खाने को दिया जा सकता है | मलमूत्रादि वेगों को रोकना , पका आम , केला , गर्म मसाला , आचार , मिर्च , सरसों का शाक आलू , भिंडी , मटर , चना , बाजरा और शराब पीना सभी वर्जित है |
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