आयुर्वेद में कैसे होता है बवासीर का इलाज ?
आयुर्वेद में कैसे होता है बवासीर का इलाज ?
बवासीर किसे कहा जाता है ? -
आधुनिक भाषा में बवासीर या अर्श को Piles / Hemorrhoids कहा जाता है | यह मलद्वार / गुदा में पैदा होने वाला रोग है | अर्श एक त्रिदोषज रोग है और आयुर्वेद में इसको महारोग कहा गया है | बवासीर रोग का मुख्य कारण लगातार कब्ज रहना माना गया है यह रोग औरतों में विशेष रूप से पाया जाता है |
जब शुष्क मल को बाहर निकालने के लिए जोर लगाया जाता है तो दबाव पड़ने पर मांस तन्तुओं से बनी दीवार के कमजोर होने के कारण सिराओं के आगे के हिस्से में रक्त इकट्ठा होने से वह हिस्सा फूल जाता है और इस सूजन को अर्श / मस्से / बवासीर कहते है | इस रोग में रोगी को बहुत पीड़ा होती है यह कष्टसाध्य रोग है और मंद अग्नि वाले रोगी में यह रोग विशेष रूप से पैदा होता है |
चिकित्सा भेद से अर्श / बवासीर दो प्रकार की होती है
सूखी बवासीर और खूनी बवासीर आधुनिक भाषा में बवासीर या अर्श को Piles / Hemorrhoids कहा जाता है | यह मलद्वार / गुदा में पैदा होने वाला रोग है | अर्श एक त्रिदोषज रोग है और आयुर्वेद में इसको महारोग कहा गया है | बवासीर रोग का मुख्य कारण लगातार कब्ज रहना माना गया है यह रोग औरतों में विशेष रूप से पाया जाता है |
जब शुष्क मल को बाहर निकालने के लिए जोर लगाया जाता है तो दबाव पड़ने पर मांस तन्तुओं से बनी दीवार के कमजोर होने के कारण सिराओं के आगे के हिस्से में रक्त इकट्ठा होने से वह हिस्सा फूल जाता है और इस सूजन को अर्श / मस्से / बवासीर कहते है | इस रोग में रोगी को बहुत पीड़ा होती है यह कष्टसाध्य रोग है और मंद अग्नि वाले रोगी में यह रोग विशेष रूप से पैदा होता है |
चिकित्सा भेद से अर्श / बवासीर दो प्रकार की होती है
इसके इलावा अर्श के दो और प्रकार है- Internal Piles and External Piles .
बवासीर रोग होने के कारण -
बवासीर रोग होने के कई कारण हो सकते है | इसके मुख्य कारण इस प्रकार है -
बवासीर रोग होने के कई कारण हो सकते है | इसके मुख्य कारण इस प्रकार है -
- खट्टे - तीखे और नमक वाले पदार्थों का ज्यादा सेवन करने से
- वातादि दोषों के प्रकुपित होने से
- मल को रोककर रखने से
- लगातार कब्ज रहने से
- शराब ज्यादा पीने से
- आलस्य
- शारीरिक कार्य कम करने से
- पानी कम मात्रा में पीना
- बहुत देर तक बैठे रहने से
- अधिक उपवास रखने से
- अधिक व्यायाम करने से
- आहार में फाइबर की कमी होने से बवासीर या अर्श रोग होने की संभावना रहती है |
बवासीर / अर्श के सामान्य लक्षण -
- रोगी को अंगुली एवं गुदा परीक्षा से मस्से महसूस होते है |
- मल का त्याग करते समय और बाद में खून निकलता है |
- कब्ज रहने से मल त्याग के समय पीड़ा के साथ कड़ा मल निकलता है |
- रोगी को बैठने में मुश्किल होती है तेज और सुई चुबने जैसी पीड़ा होती है |
- बवासीर में शुद्ध रक्त निकलता है जिसको पानी से साफ़ करने पर दाग साफ़ हो जाते हैं |
- बवासीर में रक्त कम या ज्यादा निकलता है जिसके कारण रोगी का H.B कम हो जाता है जिससे रोगी बेहोश भी हो जाता है |
आयुर्वेद में कैसे होता है बवासीर / अर्श का आयुर्वेदिक उपचार -
बवासीर / अर्श की चिकित्सा लक्षणों के आधार पर चिकित्सक की सलाह से करानी चाहिए | आयुर्वेद में अर्श रोग का इलाज पूरी तरह संभव है |
- बवासीर के रोगी को सुबह नारायण चूर्ण या त्रिफला चूर्ण या गुलकंद का सेवन सुखोष्ण जल से करना चाहिए |
- भोजन खाने से पहले भूनी हुई छोटी हरड़ का चूर्ण गुड़ के साथ मिलकर खाना चाहिए
- काला तिल 50 gm को 50 gm मक्खन या दही के साथ चबाकर 21 दिन तक खाने से मस्से ख़त्म होते है |
- मंदाग्नि के रोगी को लस्सी पीने को दें
- चित्रकमूल और सोंठ का चूर्ण 3 gm की मात्रा में सुबह और शाम गर्म जल से खाएं
- कासीसादि तेल को रुई पर लगाकर मस्सों पर लगायें , यह सूजन, खुजली और वेदना कम करता है |
- कंकायन वटी, त्रिफला चूर्ण, भल्लातक वटी, प्राणदा वटी / अर्शघनी वटी / अर्श कुठार रस आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श से खा सकते है |
- भोजन के बाद अभयारिष्ट/ द्राक्षासव/ कुटजारिष्ट/ तक्रारिष्ट/ फलारिष्ट 20 से 25 ml समान जल के साथ पीने को दें
- शौच जाने के बाद गुदा / मलद्वार को गुनगुने जल से धोना चाहिए
- तुंबरू, विडंग, देवदारु, जौ के बीज और घी का धुआँ देना चाहिए यह संक्रमण होने से रोकता है
- जात्यादि तेल, कासीसादि तेल, शतधौत घृत को बवासीर के मस्सों पर लगा सकते है
- हलके गर्म पानी में बैठकर कटि स्नान करना चाहिए, कटि स्नान करने के लिए गरम जल में त्रिफला, हल्दी, फिटकरी या फिर सादा गरम जल भी प्रयोग कर सकते है |
- अगर बवासीर का रोग बढ़ गया हो तो क्षार सूत्र चिकित्सा करानी चाहिए, जिससे रोगी को राहत महसूस होती है |
बवासीर में क्या करें -
- गर्म, भारी, तीखा और ज्यादा नमक वाला भोजन ना खाएं
- भोजन में सलाद अधिक खाएं
- रात को सोने से पहले गुनगुने जल से तीन ग्राम त्रिफला चूर्ण रोज़ाना खाएं, इसको खाने से रोगी को कब्ज़ नहीं होती है |
- रोजाना शौच जाने की आदत डालें
- रोजाना कसरत/ व्यायाम करें, जैसे सैर करना,दौड़ना और प्राणायाम करना आदि
- रोजाना भोजन में हरी पत्तेदार सब्जी, फल, लस्सी( छाछ ), अंगूर, अंजीर, अमरुद, अनार और आसानी से पचने वाले पदार्थों का सेवन करें |
- चावल , दलिया , मुंग-अरहर-मसूर की दाल , गाय-बकरी का दूध, दही, मक्खन, बथुआ, चौलाई, मूली , गाजर , आनर , संतरा , मुनका, आंवला आदि बवासीर के रोगी को खाने को दिया जा सकता है |
- गुदा के आस-पास साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखें |
बवासीर में क्या ना करें
- मल और मूत्र को अधिक देर तक रोक कर ना रखें
- मल का त्याग करते समय अधिक जोर ना लगाएं
- विरुद्ध आहार का सेवन नहीं करना चाहिए
- ज्यादा पका हुआ भोजन ना खाएं
- मसालेदार और मांसहारी भोजन ना खाएं
- कब्ज़ ना होने दें
- पका हुआ आम, केला, गर्म मसाला, आचार, मिर्च, सरसों का शाक, आलू , भिंडी, मटर, चना, बाजरा और शराब पीना सभी वर्जित है |
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